मेरे बड़े --

Sunday, August 31, 2014

बप्पा मोरिया !

मेरा पहला गणेशोत्सव ...
माँ -पापा और साबी चाचा ने मदद की सजाने में !

Wednesday, August 27, 2014

मुस्कुरा मेरी नानी मुस्कुरा

तुझको मेरी इस शरारत का वास्ता
जो  भरा अबके आँखों में पानी
छुपाई है नजरें नन्हे हाथों से मैंने
चलो जरा हौले से मुस्कुरा दो न "नानी"
-मायरा 

Friday, August 22, 2014

मीठी वाली बांसुरी

नानी थोडा उधर गयी है ,तब तक बांसुरी की आड़ में थोड़ा अंगूठा चुपके से .......
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ओ तेरे की !!!
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चोरी पकड़ी गयी ....... :-D

Tuesday, August 19, 2014

मेरी पहली राखी

आज मैंने कान्हा भैया को राखी बांधी (मम्मी की हेल्प लेकर )

Monday, August 11, 2014

नानी के साथ फोटो सेशन

नानी के साथ मेरे फोटो या तो मामा लेते हैं या मम्मी या फिर पापा ........ जो भी हो ....
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यू नो ! कोई भी फोटोग्राफर हो , कोई फर्क नहीं पड़ता .....फोटो तो अच्छा आना ही है।

Friday, August 8, 2014

अलटी------------पलटी

और ये मारीईईईईईईईइ .....मैनें पलटी.......

मेरी पहली सेल्फ पलटी ने नानी की दुनियां भी पलटी .......

Monday, August 4, 2014

मेरा उपहार बहुत प्यारा - सच्ची!! , आपको मेरी खूब सारी पुच्ची !!!

आज नानी के मार्फत एक उपहार मिला ,गिरिजा नानीजी को ढेर सारी प्यारी सी पुच्ची!!! -

"अर्चना जी मैंने अपनी पोती के लिये जब वह तीन माह की थी यह कविता लिखी थी । अब यह मायरा के लिये "
---- गिरिजा कुलश्रेष्ठ

नाजुक चंचल है
नन्ही कोंपल है
पत्तों पर शबनम सी निर्मल
झिलमिल-झिलमिल है
फुलबगिया सी मेरी गुडिया
कोमल--कोमल है
रेशम सी गभुआरी अलकें
पलकें हैं पंखुडियाँ
कोई आहट सुनती है तो
झँपकाती है अँखियाँ ।
विहगों के कलरव जैसी वह
हँसती खिलखिल है ।फुलबगिया सी ...
किलक-किलक कर पाँव चलाती
चप्पू दोनों हाथ चलाती
पंखुडियों से होंठ खोल कर
आ.आ..ऊँ..ऊँ..ऊँ बतियाती ।
नदिया की धारा बहती ज्यों
कलकल कुलकुल है ।फुलबगिया सी...
नन्हे नाजुक हाथ
हथेली नरम नवेले पत्ते
शहतूती सी हैं अँगुलियाँ
गाल शहद के छत्ते ।
फूलों की टहनी पर जैसे
चहके बुलबुल है । फुलबगिया सी ...

Sunday, August 3, 2014

वीर-पोस

नानी ने बताया आज वीर-पोस का त्यौहार है , इसे श्रावणी पूर्णिमा के पहले वाले रविवार को मनाया जाता है ।इसमें भाई /मामा अपनी बहन /भानेज के घर राखी बाँधने का बुलावा देने जाता है और साथ में बहन के घर गेहूं लेकर जाता है (शायद बहन के घर रुकने /न खाने का रिवाज रहता हो कभी इसलिए ),बहन भाई को खाना खिलाती है और टीका लगाती है,आरती उतारती है ,मुंह मीठा करवाती है ,उसके बाद भाई अपने दोनों हाथों की पोस बनाकर गेहूं बहन के आंचल में डालता है ,खर्चा /रूपया देता है।....
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मैंने भी सार्थक भैया और छोटे मामाजी  सुयश को टीका लगाया और उनसे वीर-पोस ली ......
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माँ ने मेरी मदद की और टीका लगाना सिखाया ......(माँ ने वत्सल मामा -नेहा मामी को खूब याद किया .)....
आप देखिये मैंने टीका अच्छे से लगाया न
!

Saturday, August 2, 2014

माँ सेर तो मैं सवा सेर ....

नानी को खेलों से बहुत प्यार है ,कोई भी खेल छोड़ा नहीं होगा .....
और वही माँ और मामा को भी सिखाया ,मामा वालीबाल के खिलाड़ी और माँ नेशनल गोताखोर ........

इस समय माँ को सानिया बुलाते थे ज्यादातर लोग ....
जैसे मुझे अभी मेरीकोम .....
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बल्ले -बल्ले !